Post by abdulahad on Aug 18, 2015 2:09:34 GMT 5.5
मुनस्यारी पहला दिन
शाम 6:30 बजे मुरादाबाद बस स्टेशन पर पहुँच गया। इरादा था रात को हलद्वानी से 12 बजे मुनस्यारी वाली बस से सीधा मुनस्यारी जाने का।
हल्द्वानी से मुनस्यारी 1 ही बस जाती थी, पहले यह बस मुनस्यारी तक जाती थी परन्तु अब कुछ समय से यह बस केवल थल तक जाती है और यह बस आप को सुबह 11:30 बजे तक थल पहुँचाती है। थल से आप जीप से मुनस्यारी जा सकते हैं. .
हल्द्वानी से थल 217 KM है और थल से मुनस्यारी 72 KM है।
शाम को 7:15 बजे मुरादाबाद से चला 10:30 बजे हल्द्वानी पहुँच गया. 12 बजे बस आ गई, कंडक्टर से बात करी तो बस में कोई सीट खाली नहीं थी, मुझे पता था 1 बजे यहाँ से न्यूज़ पेपर ले जाने वाली जीप जाती हैं, बस छोड़ दी जीप वाले को ढूंढा, 400 में थल तक के लिए जीप हो गई.
हल्द्वानी से रत को 1 बजे चल दिए, सुबह 4 बजे अल्मोड़ा पहुंच गया 15 मिनट यहाँ रुके फिर सुबह 8 बजे बेरीनाग पहुंच गया यहाँ चाय पी और सुबह 9.30 बजे थल पहुंच गया। थल पहुंच कर समोसे खाए और चाय पी.
यहाँ से दूसरी जीप करी और सुबह 11:30 बजे थल से चले. थल से मुनस्यारी के रस्ते में तेजम तक रामगंगा नदी साथ साथ चलती है, एक दम नीला पानी है खूब फोटो खीचे पर सब जीप में बैठे बैठे ही. मुनस्यारी से 30 KM पहले बिर्थी फॉल पड़ता है बड़ा सुन्दर झरना है. बिर्थी झरना 125 मीटर की उचाई से गिरता है, यह झरना काफी दूर से ही नज़र आने लगता है।
2.30 बजे मुनस्यारी पहुंच गया, मौसम साफ़ नहीं था, पंचचूली नहीं दिखे थोड़ा अफ़सोस था
300 रुपये में होटल का कमरा ले लिया, कमरे में गीज़र भी था सोचा नाहा लु पर नहीं नहाया, भूक लगी थी खाना खाने गया तो 4 बज गए थे यहाँ रेस्टुरेन्ट कम ही हैं. 4 बजे किसी रेस्टुरेन्ट में खाना नहीं मिला। यहाँ खाना टाइम से बनता है और टाइम से खत्म हो जाता है, फिर से चाय पी और बन खाए.
पेट पूजा के बाद बाजार घूमा, यहाँ का बाजार पर्यटकों के लिए ज़्यादा खास नहीं है जैसा की नैनीताल या मसूरी का है, लोकल लोगो के लिए अच्छा बाजार है, आस पास के गाँव के लोग यहाँ से ज़्यादा खरीदारी करते हैं
बिनसर में सूर्य उदय
बिर्थी झरना कई KM पहले से
मुनस्यारी दूसरा दिन
सुबह 4:45 का अलार्म लगा कर सोया था, 5:07 am का सूर्य उदय था, उठा तो उम्मीदों पर पानी फिर गया. आसमान में बादल छाए थे, थोड़ी देर इन्तिज़ार करा पर कोई फायदा नहीं हुआ. सुबह सुबह पूरे शहर में चिड़ियाँ चहक रही थी. दोबारा सो गया सीधा 9 बजे उठा.
आज खलिया टॉप जाने का इरादा था. जल्दी जल्दी तैयार हुआ नाश्ते में आलू के पराठे खाए. नाश्ता करते ही बारिश शुरू हो गई. 10:45 am पर बारिश रुकी तो चल दिया खलिया टॉप.
खलिया टॉप की ट्रैकिंग बलाती बैंड से शुरू होती है जो मुनस्यारी से 9 KM दूर थल रोड पर है. आप बलाती बैंड टैक्सी से या पैदल जा सकते हैं पैदल का रास्ता थोड़ा ख़राब है और बहुत चढाई वाला है. टैक्सी नहीं मिली सो मै पैदल के रस्ते पर चल दिया।
मुनस्यारी से 4 KM दूर ही आया था के बारिश फिर से शुरू हो गई. वहां कोई ऐसी जगह नहीं थी के बारिश से बचा जा सके वापसी भागा, कुछ दूर वापसी चल कर 1 घर के छज्जे के निचे खड़ा हो गया. बारिश और ज़्यादा तेज़ हो गई. तभी उस घर में से 1 औरत ने अंदर बैठने का निमंत्रण दे दिया। पहाड़ी घर ज़्यादा बड़े नहीं होते, छोटा सा घर था, अंदर 1 औरत ओर थी शायद उस की पड़ोसन होगी। मै भीग गया था तो घर की मालकिन ने चाय बना कर दी. पहले तो मैंने मना करा पर दोबारा कहने पर चाय ले ली. मेरे पास चिप्स और केक था, मैंने चिप्स और केक खाए और उन दोनों को भी दिये। काफी देर बात चीत होती रही मुझे उनकी भाषा के कुछ शब्द समझ नहीं आ रहे थे। घर की मालकिन ने खाने का प्रस्ताव रखा, कहा "चावल बना रही हू भैया खा कर जाना " मैंने मना कर दिया सुबह के आलू के पराठे अभी भी पेट में थे, बारिश रुकी तो वापसी मुनस्यारी आ गया 1 बज गया था.
मुनस्यारी से जौल्जिबि रोड पर 3 KM आगे शेर सिंघ पंगती संग्राहलय है, अभी 1 बजा था तो काफी समय था अपने पास, संग्राहलय की ओर चल दिया। 3 KM पता भी नहीं चले पूरा रास्ता ढलान वाला था. कुछ देर को मौसम साफ़ हुआ तो रस्ते में पंचचुली के भी दर्शन हो गये. मुनस्यारी से पंचचुली बहुत सुन्दर दिखाई देता है. परन्तु मुझे 1 झलक ही देखने को मिली थी अभी तक. फोटो लेने की कोशिश करी पर मौसम इतना भी साफ़ नहीं था के कैमरे में फोटो आ सके.
आधे घंटे में अराम अराम से चलता हुआ पहुंच गया, संग्राहलय ज़्यादा बड़ा तो नहीं है, 3 कमरो में बना हुआ है और तीनो कमरे 1 के अंदर 1 हैं. 10 RS. का टिकट है पहले कमरे में ही टिकट मिलता है. बहार बोर्ड लगा था फोटो लेना माना है
3 बजे वापसी चल दिया, वापसी जा कर खान खाया आलू जीरा, ज़्यादा स्वादिस्ट नहीं था बस पेट भर लिया।
होटल में आ गया, अभी तक मुझे अपने खुद के फोटो खीचने में बड़ी दिक्कत आ रही थी और फोटो में मज़ा भी नहीं आ रहा था दिमाग लगाया 1 मोबाइल के लिए स्टैंड बनाया जाये। होटल के बहार ही 1 परचून की दूकान थी उस से 1 कोल्ड ड्रिंक ली और 1 ब्लेड लिया और 1 खली सिगरेट की डिब्बी मांग ली. होटल में आराम से बैठा और 1 काम चलाऊ मोबाइल का स्टैंड बना लिया , अगले भाग में बताऊंगा यह स्टैंड कितना काम आया.
पहले यह चिड़िया पुरे उत्तर भारत में पाई जाती थी अब कही कही बची हैं
पंचचूली की 1 झलक
मिलम गाँव 1962 के चीन युद्ध के बाद
मिलम गाँव सन 1985 में (जाऊंगा कभी यहाँ भी दिल तो बहुत है जाने का )
संग्रहालय का प्रवेश
खुद का बनाया हुआ मोबाइल स्टैंड - बढ़िया सेल्फ़ी आई इस से
मुनस्यारी तीसरा दिन -खलिया टॉप
कल बारिश की वजह से खलिया टॉप नहीं जा पाया था, मेरे पास बस आज का दिन बचा था खलिया जाने के लिए। कल यहाँ से अल्मोड़ा जाना है.
बादलो की वजह से कल सूर्य उदय भी नहीं देख पाया था आज सुबह 4.45 पर उठ गया पर आज भी बदल थे. 5 मिनट बादल हटने का इंतिज़ार करा फिर वापसी कमरे में चला गया,
सुबह 5.45 पर मैं तैयार हो गया, नाशते में चाय और ब्रेड बटर लिए. 4 ब्रेड के पीस 50 रुपये के दीये, यह देख कर मेरे होश उड़ गए सोच लिया अब इस होटल में नहीं खाऊंगा। दाल सब्जी, दम आलू 120, 140 के और 4 ब्रेड के पीस 50 रुपैये के हद है।
जैसा की मैंने पिछले ब्लॉग में लिखा था, खलिया टॉप की ट्रैकिंग बलाती बैंड से शुरू होती है और बलाती बैंड मुख्य शहर से 9 KM दूर थल रोड पर है. ज़्यादा तर लोग गाड़ी से बलाती बैंड तक जाते हैं. मेरी इछा भी जीप से जाने की थी इस के दो कारण थे, पहला बलाती बैंड तक का पैदल मार्ग 5 KM है और अगर मै पैदल जाता तो 5 KM ज़्यादा चलना पड़ता और पता नहीं वापसी में बलाती से कोई गाडी मिलेगी भी या नहीं, तो वापसी में पैदल आना ठीक रहेगा दूसरा कारण था समय, खलिया टॉप बलाती बैंड से लगभग 8 KM दूर है, जहाँ बलाती बैंड की उचाई 2600 मीटर है वही खलिया टॉप की उचाई 3750 मीटर 8 km में 1150 मीटर चढ़ना था, ज़्यादा तर लोग खलिया टॉप पर टेंट लगा कर रात गुज़ारते हैं और अगले दिन वापसी आते हैं. मुझे आज ही वापसी आना था तो मैं बलाती बैंड तक जीप से जा कर अपनी ऊर्जा बचाये रखना चाहता था।
3750 मीटर सोच कर थोड़ा डर लग रहा था और वह भी अकेले, यह मेरी पहली इतनी उचाई की यात्रा थी इस से पहले 3000 मीटर वियास शिखर गया था। 6.30 बजे तक जीप का इन्तिज़ार करा पर कोई जीप नहीं मिली पैदल ही चल दिया, थोड़ी दूर जा कर 1 लड़के से बलाती बैंड के पैदल मार्ग की पुष्टि करी तो उसने पूछ लिया भैया कहा जाना हैं मैंने बता दिया बलाती बैंड से खलिया टॉप जाना है उस ने बताया के आप बलाती फ़ार्म जाओ, खलिया का रास्ता बलाती बैंड से शुरू हो कर बलाती फार्म के पास से ही जाता है, उस लड़के ने 1 पैदल मार्ग बता भी दिया। बस यही 1 गलती हो गई, मैं बिना सोचे उस के बताये मार्ग पर चल दिया वास्तव में वोह कोई मार्ग नहीं था, बस पहाड़ो पर चढ़ते जाओ ना ही कोई पकडंडी ना कोई रास्ता, बलाती फार्म पर काम करने वाले मज़दूर इस रस्ते से जाते हैं कुछ दूर जा कर 1 लड़का मिला वोह बलाती फार्म ही जा रहा था, मै उस से बाते करता हुआ उस के साथ साथ चलता रहा, मै तो बलाती फार्म तक पहुचने में ही थक गया था,
बलाती फार्म 2550 मीटर पर आलू का बहुत बड़ा सरकारी खेत है, यहाँ काफी बड़ा मैदान था जिस में सीढ़ी दार खेत थे सब खेतो में आलू थे। मै इतना थक गया था के 15 20 मिनट को यही बैठ गया कुछ फोटो खीचे। पूरे खेत के चारो तरफ पथरो से बानी 2 फ़ीट उची दिवार है जिस से की कोई पालतू या जंगली जानवर खेत में ना घुस जाये। खेत की दीवार कूद कर के खलिया टॉप को जाने वाली पगडंडी पर आ गया।
अब जंगल में अकेला चला जा रहा था चारो तरफ चिड़िये चहक रही थी। रस्ते में 1 2 लोग ही मिले, 4 KM दूर 3230 मीटर की उचाई पर कुमाऊं मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस बन रहा है लगभग काम पूरा हो गया है। यहाँ कुछ मज़दूर काम कर रहे थे उन से बात करने पर पता चला के इस से आगे पानी नहीं मिलेगा बर्फ मिलेगी। मैं यहाँ आधा घंटा बैठा रहा। मेरी पानी की बोतल खाली होने वाली थी यहाँ भर ली। मैं अपने साथ चिप्स कोल्ड ड्रिंक ले गया था। यहाँ बैठ कर कोल्ड ड्रिंक पी चिप्स खाए। मैंने कोल्ड ड्रिंक की बोतल में भी पानी भर लिया। यहाँ जो पानी आ रहा था ऊपर बर्फ पिघल कर आ रही थी। यहाँ से चला तो हालत कुछ ख़राब होने लगी अभी तक मैं 3400 मीटर की उचाई पर पहुंच था। अब कुछ कुछ हाई अल्टीट्यूड का असर हो रहा था 2 मिनट चलता 3 मिनट को रुक जाता।
दोपहर बारह बजे तक मैं खलिया बुग्याल पहुंच गया था। यहाँ कुछ और पर्यटक भी थे। यहाँ कुछ देर आराम करा फिर चल दिया फिर से मैं जंगल में अकेला था। कुछ दूर गया तो काले बदल आने लगे, बुग्याल के दोनों तरफ खाई थी और दोनों तरफ ही बदल आने लगे अचानक बहुत तेज़ बिजली चमकी बहुत तेज़ आवाज़ के साथ। चलते चलते मेरे बैग में से हलकी सी आवाज़ आई मैंने बैग खोल कर देखा तो 1 चिप्स का पैकेट फट गया था। इस का कारण था हवा का काम दबाव। हम जितनी अधिक उचाई पर होते हैं उतना ही वायु-मंडल में हवा का दबाव काम होता जाता है और साथ ही साथ ऑक्सीजन भी काम होती जाती है जिस से कारण सांस लेने भी दिक्कत होती है। थोड़ा आराम करने बैठ गया, चिप्स का पैकेट खुदरत ने खुद खोल दिया था अब मैं खाने को कैसे मन करता, बैठ गया खाने, तभी बारिश होने लगी। बुग्याल में ना तो कोई पेड़ होता है और ना ही कोई सर छिपाने की जगह। बुग्याल में कोई रास्ता ना भटक जाये इस के लिए कुछ कुछ दूरी पर छोटे छोटे सफ़ेद रंग के पत्थर रखे हैं जो दर्शाते हैं इधर से जाना है। 10 मिनट में ही काफी भीग गया। एक तो बारिश ऊपर से बदल ऐसे आ गए के कुछ भी दिखना बंद हो गया 1 मीटर का भी नहीं दिख रहा था तो पत्थर भी दिखना बंद हो गए। भीगता हुआ मैं खाई की तरफ जाने लगा फिर 1 मिनट को रुका, सोचा की भीगने दो पहले कुछ दिखेगा तभी आगे चलूँगा बदल हलके नहीं हुए कुछ भी नहीं दिख रहा था थोड़ा आगे चला तो 1 पत्थर मिला 4 से 5 फ़ीट ऊचा उस के निचे घुस गया, पत्थर थोड़ा टेड़ा था उस के निचे बारिश काम आ रही थी। ओले पड़ने लगे पुरे बुग्याल में मानो ओलो की चादर बिछ गई हो। करीब 40 मिनट तक सुकड़ा हुआ वही बैठा रहा असहनीय ठण्ड लगने लगी थी। जब बारिश रुकी तो 1.30 बज गया था। सोचा अब आगे जाऊ या वापसी। अभी मै 3625 मीटर की उचाई पर खलिया टॉप यहाँ से 125 मीटर उचाई पर रह गया था पर खलिया की तरफ काफी बदल थे तो वापसी चलने का फैसला लिया और चल दिया।
वापसी में कही नहीं रुका बस चलता गया। कभी भी पहाड़ से वापसी उतरते समय जल्दी जल्दी नहीं उतरना चाहिए, घुटनो में दर्द हो जाता है। इस बात का पता होते होए भी रस्ते में टांग की नस खिच गई। जैसे तैसे कर के बलाती बैंड तक आ गया सोच लिया था चाहे रत तक गाड़ी का इन्तिज़ार करना पड़े पैदल नहीं जाऊंगा अब तक लगभग 18 19 KM पैदल चल चुका था। बैठा रहा आधे घंटे बाद 1 वैगन आर आई हाथ दिया तो रोक गई अंदर पति पत्नी और उनकी बेटी थे आते ही कहा सर सिटी तक लिफ्ट चाहिए पैर में दर्द है। उन्होंने पूछा कहा से आ रहे हो मैंने बता दिया लिफ्ट मिल गई 9 KM के पूरे रस्ते दोनों पति पत्नी मुझ से बाते करते हुए आये, सवालो की बौछार कर दी अकेले क्यू गए थे और कहा कहा घूमे हो। परिवार का स्वभाव बहुत अच्छा था।
शहर आ कर सब से पहले चाय पीने गया, चाय पी ब्रीटान्नीअ का केक खाया। फिर कमरे में जा कर थोड़ी देर को सो गया। 8.30 बजे उठा खाना खाया फिर थोड़ी देर घूम फिर कर सो गया।
बलाती फार्म जाने का पैदल मार्ग
बलाती फार्म
बलाती फार्म में आलू की खेती
कल बनाये गए स्टैंड से लिया गया फोटो
बदल आ रहे हैं
पनोरमिओ मोड में 1 फोटो
यह पेड़ अधिक उचाई पर पाये जाते हैं पता नहीं बर्फ के वज़न से लेट गए या होते ही ऐसे हैं
पंचचूली की झलक
बदल आ गए
लो जी आ गए बदल
पत्थर के निचे बारिश से बचने के लिए
ओलो की चादर सी
कुमाऊ मंडल का टूरिस्ट रेस्ट हाउस
धन्यवाद
शाम 6:30 बजे मुरादाबाद बस स्टेशन पर पहुँच गया। इरादा था रात को हलद्वानी से 12 बजे मुनस्यारी वाली बस से सीधा मुनस्यारी जाने का।
हल्द्वानी से मुनस्यारी 1 ही बस जाती थी, पहले यह बस मुनस्यारी तक जाती थी परन्तु अब कुछ समय से यह बस केवल थल तक जाती है और यह बस आप को सुबह 11:30 बजे तक थल पहुँचाती है। थल से आप जीप से मुनस्यारी जा सकते हैं. .
हल्द्वानी से थल 217 KM है और थल से मुनस्यारी 72 KM है।
शाम को 7:15 बजे मुरादाबाद से चला 10:30 बजे हल्द्वानी पहुँच गया. 12 बजे बस आ गई, कंडक्टर से बात करी तो बस में कोई सीट खाली नहीं थी, मुझे पता था 1 बजे यहाँ से न्यूज़ पेपर ले जाने वाली जीप जाती हैं, बस छोड़ दी जीप वाले को ढूंढा, 400 में थल तक के लिए जीप हो गई.
हल्द्वानी से रत को 1 बजे चल दिए, सुबह 4 बजे अल्मोड़ा पहुंच गया 15 मिनट यहाँ रुके फिर सुबह 8 बजे बेरीनाग पहुंच गया यहाँ चाय पी और सुबह 9.30 बजे थल पहुंच गया। थल पहुंच कर समोसे खाए और चाय पी.
यहाँ से दूसरी जीप करी और सुबह 11:30 बजे थल से चले. थल से मुनस्यारी के रस्ते में तेजम तक रामगंगा नदी साथ साथ चलती है, एक दम नीला पानी है खूब फोटो खीचे पर सब जीप में बैठे बैठे ही. मुनस्यारी से 30 KM पहले बिर्थी फॉल पड़ता है बड़ा सुन्दर झरना है. बिर्थी झरना 125 मीटर की उचाई से गिरता है, यह झरना काफी दूर से ही नज़र आने लगता है।
2.30 बजे मुनस्यारी पहुंच गया, मौसम साफ़ नहीं था, पंचचूली नहीं दिखे थोड़ा अफ़सोस था
300 रुपये में होटल का कमरा ले लिया, कमरे में गीज़र भी था सोचा नाहा लु पर नहीं नहाया, भूक लगी थी खाना खाने गया तो 4 बज गए थे यहाँ रेस्टुरेन्ट कम ही हैं. 4 बजे किसी रेस्टुरेन्ट में खाना नहीं मिला। यहाँ खाना टाइम से बनता है और टाइम से खत्म हो जाता है, फिर से चाय पी और बन खाए.
पेट पूजा के बाद बाजार घूमा, यहाँ का बाजार पर्यटकों के लिए ज़्यादा खास नहीं है जैसा की नैनीताल या मसूरी का है, लोकल लोगो के लिए अच्छा बाजार है, आस पास के गाँव के लोग यहाँ से ज़्यादा खरीदारी करते हैं
बिनसर में सूर्य उदय
बिर्थी झरना कई KM पहले से
मुनस्यारी दूसरा दिन
सुबह 4:45 का अलार्म लगा कर सोया था, 5:07 am का सूर्य उदय था, उठा तो उम्मीदों पर पानी फिर गया. आसमान में बादल छाए थे, थोड़ी देर इन्तिज़ार करा पर कोई फायदा नहीं हुआ. सुबह सुबह पूरे शहर में चिड़ियाँ चहक रही थी. दोबारा सो गया सीधा 9 बजे उठा.
आज खलिया टॉप जाने का इरादा था. जल्दी जल्दी तैयार हुआ नाश्ते में आलू के पराठे खाए. नाश्ता करते ही बारिश शुरू हो गई. 10:45 am पर बारिश रुकी तो चल दिया खलिया टॉप.
खलिया टॉप की ट्रैकिंग बलाती बैंड से शुरू होती है जो मुनस्यारी से 9 KM दूर थल रोड पर है. आप बलाती बैंड टैक्सी से या पैदल जा सकते हैं पैदल का रास्ता थोड़ा ख़राब है और बहुत चढाई वाला है. टैक्सी नहीं मिली सो मै पैदल के रस्ते पर चल दिया।
मुनस्यारी से 4 KM दूर ही आया था के बारिश फिर से शुरू हो गई. वहां कोई ऐसी जगह नहीं थी के बारिश से बचा जा सके वापसी भागा, कुछ दूर वापसी चल कर 1 घर के छज्जे के निचे खड़ा हो गया. बारिश और ज़्यादा तेज़ हो गई. तभी उस घर में से 1 औरत ने अंदर बैठने का निमंत्रण दे दिया। पहाड़ी घर ज़्यादा बड़े नहीं होते, छोटा सा घर था, अंदर 1 औरत ओर थी शायद उस की पड़ोसन होगी। मै भीग गया था तो घर की मालकिन ने चाय बना कर दी. पहले तो मैंने मना करा पर दोबारा कहने पर चाय ले ली. मेरे पास चिप्स और केक था, मैंने चिप्स और केक खाए और उन दोनों को भी दिये। काफी देर बात चीत होती रही मुझे उनकी भाषा के कुछ शब्द समझ नहीं आ रहे थे। घर की मालकिन ने खाने का प्रस्ताव रखा, कहा "चावल बना रही हू भैया खा कर जाना " मैंने मना कर दिया सुबह के आलू के पराठे अभी भी पेट में थे, बारिश रुकी तो वापसी मुनस्यारी आ गया 1 बज गया था.
मुनस्यारी से जौल्जिबि रोड पर 3 KM आगे शेर सिंघ पंगती संग्राहलय है, अभी 1 बजा था तो काफी समय था अपने पास, संग्राहलय की ओर चल दिया। 3 KM पता भी नहीं चले पूरा रास्ता ढलान वाला था. कुछ देर को मौसम साफ़ हुआ तो रस्ते में पंचचुली के भी दर्शन हो गये. मुनस्यारी से पंचचुली बहुत सुन्दर दिखाई देता है. परन्तु मुझे 1 झलक ही देखने को मिली थी अभी तक. फोटो लेने की कोशिश करी पर मौसम इतना भी साफ़ नहीं था के कैमरे में फोटो आ सके.
आधे घंटे में अराम अराम से चलता हुआ पहुंच गया, संग्राहलय ज़्यादा बड़ा तो नहीं है, 3 कमरो में बना हुआ है और तीनो कमरे 1 के अंदर 1 हैं. 10 RS. का टिकट है पहले कमरे में ही टिकट मिलता है. बहार बोर्ड लगा था फोटो लेना माना है
3 बजे वापसी चल दिया, वापसी जा कर खान खाया आलू जीरा, ज़्यादा स्वादिस्ट नहीं था बस पेट भर लिया।
होटल में आ गया, अभी तक मुझे अपने खुद के फोटो खीचने में बड़ी दिक्कत आ रही थी और फोटो में मज़ा भी नहीं आ रहा था दिमाग लगाया 1 मोबाइल के लिए स्टैंड बनाया जाये। होटल के बहार ही 1 परचून की दूकान थी उस से 1 कोल्ड ड्रिंक ली और 1 ब्लेड लिया और 1 खली सिगरेट की डिब्बी मांग ली. होटल में आराम से बैठा और 1 काम चलाऊ मोबाइल का स्टैंड बना लिया , अगले भाग में बताऊंगा यह स्टैंड कितना काम आया.
पहले यह चिड़िया पुरे उत्तर भारत में पाई जाती थी अब कही कही बची हैं
पंचचूली की 1 झलक
मिलम गाँव 1962 के चीन युद्ध के बाद
मिलम गाँव सन 1985 में (जाऊंगा कभी यहाँ भी दिल तो बहुत है जाने का )
संग्रहालय का प्रवेश
खुद का बनाया हुआ मोबाइल स्टैंड - बढ़िया सेल्फ़ी आई इस से
मुनस्यारी तीसरा दिन -खलिया टॉप
कल बारिश की वजह से खलिया टॉप नहीं जा पाया था, मेरे पास बस आज का दिन बचा था खलिया जाने के लिए। कल यहाँ से अल्मोड़ा जाना है.
बादलो की वजह से कल सूर्य उदय भी नहीं देख पाया था आज सुबह 4.45 पर उठ गया पर आज भी बदल थे. 5 मिनट बादल हटने का इंतिज़ार करा फिर वापसी कमरे में चला गया,
सुबह 5.45 पर मैं तैयार हो गया, नाशते में चाय और ब्रेड बटर लिए. 4 ब्रेड के पीस 50 रुपये के दीये, यह देख कर मेरे होश उड़ गए सोच लिया अब इस होटल में नहीं खाऊंगा। दाल सब्जी, दम आलू 120, 140 के और 4 ब्रेड के पीस 50 रुपैये के हद है।
जैसा की मैंने पिछले ब्लॉग में लिखा था, खलिया टॉप की ट्रैकिंग बलाती बैंड से शुरू होती है और बलाती बैंड मुख्य शहर से 9 KM दूर थल रोड पर है. ज़्यादा तर लोग गाड़ी से बलाती बैंड तक जाते हैं. मेरी इछा भी जीप से जाने की थी इस के दो कारण थे, पहला बलाती बैंड तक का पैदल मार्ग 5 KM है और अगर मै पैदल जाता तो 5 KM ज़्यादा चलना पड़ता और पता नहीं वापसी में बलाती से कोई गाडी मिलेगी भी या नहीं, तो वापसी में पैदल आना ठीक रहेगा दूसरा कारण था समय, खलिया टॉप बलाती बैंड से लगभग 8 KM दूर है, जहाँ बलाती बैंड की उचाई 2600 मीटर है वही खलिया टॉप की उचाई 3750 मीटर 8 km में 1150 मीटर चढ़ना था, ज़्यादा तर लोग खलिया टॉप पर टेंट लगा कर रात गुज़ारते हैं और अगले दिन वापसी आते हैं. मुझे आज ही वापसी आना था तो मैं बलाती बैंड तक जीप से जा कर अपनी ऊर्जा बचाये रखना चाहता था।
3750 मीटर सोच कर थोड़ा डर लग रहा था और वह भी अकेले, यह मेरी पहली इतनी उचाई की यात्रा थी इस से पहले 3000 मीटर वियास शिखर गया था। 6.30 बजे तक जीप का इन्तिज़ार करा पर कोई जीप नहीं मिली पैदल ही चल दिया, थोड़ी दूर जा कर 1 लड़के से बलाती बैंड के पैदल मार्ग की पुष्टि करी तो उसने पूछ लिया भैया कहा जाना हैं मैंने बता दिया बलाती बैंड से खलिया टॉप जाना है उस ने बताया के आप बलाती फ़ार्म जाओ, खलिया का रास्ता बलाती बैंड से शुरू हो कर बलाती फार्म के पास से ही जाता है, उस लड़के ने 1 पैदल मार्ग बता भी दिया। बस यही 1 गलती हो गई, मैं बिना सोचे उस के बताये मार्ग पर चल दिया वास्तव में वोह कोई मार्ग नहीं था, बस पहाड़ो पर चढ़ते जाओ ना ही कोई पकडंडी ना कोई रास्ता, बलाती फार्म पर काम करने वाले मज़दूर इस रस्ते से जाते हैं कुछ दूर जा कर 1 लड़का मिला वोह बलाती फार्म ही जा रहा था, मै उस से बाते करता हुआ उस के साथ साथ चलता रहा, मै तो बलाती फार्म तक पहुचने में ही थक गया था,
बलाती फार्म 2550 मीटर पर आलू का बहुत बड़ा सरकारी खेत है, यहाँ काफी बड़ा मैदान था जिस में सीढ़ी दार खेत थे सब खेतो में आलू थे। मै इतना थक गया था के 15 20 मिनट को यही बैठ गया कुछ फोटो खीचे। पूरे खेत के चारो तरफ पथरो से बानी 2 फ़ीट उची दिवार है जिस से की कोई पालतू या जंगली जानवर खेत में ना घुस जाये। खेत की दीवार कूद कर के खलिया टॉप को जाने वाली पगडंडी पर आ गया।
अब जंगल में अकेला चला जा रहा था चारो तरफ चिड़िये चहक रही थी। रस्ते में 1 2 लोग ही मिले, 4 KM दूर 3230 मीटर की उचाई पर कुमाऊं मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस बन रहा है लगभग काम पूरा हो गया है। यहाँ कुछ मज़दूर काम कर रहे थे उन से बात करने पर पता चला के इस से आगे पानी नहीं मिलेगा बर्फ मिलेगी। मैं यहाँ आधा घंटा बैठा रहा। मेरी पानी की बोतल खाली होने वाली थी यहाँ भर ली। मैं अपने साथ चिप्स कोल्ड ड्रिंक ले गया था। यहाँ बैठ कर कोल्ड ड्रिंक पी चिप्स खाए। मैंने कोल्ड ड्रिंक की बोतल में भी पानी भर लिया। यहाँ जो पानी आ रहा था ऊपर बर्फ पिघल कर आ रही थी। यहाँ से चला तो हालत कुछ ख़राब होने लगी अभी तक मैं 3400 मीटर की उचाई पर पहुंच था। अब कुछ कुछ हाई अल्टीट्यूड का असर हो रहा था 2 मिनट चलता 3 मिनट को रुक जाता।
दोपहर बारह बजे तक मैं खलिया बुग्याल पहुंच गया था। यहाँ कुछ और पर्यटक भी थे। यहाँ कुछ देर आराम करा फिर चल दिया फिर से मैं जंगल में अकेला था। कुछ दूर गया तो काले बदल आने लगे, बुग्याल के दोनों तरफ खाई थी और दोनों तरफ ही बदल आने लगे अचानक बहुत तेज़ बिजली चमकी बहुत तेज़ आवाज़ के साथ। चलते चलते मेरे बैग में से हलकी सी आवाज़ आई मैंने बैग खोल कर देखा तो 1 चिप्स का पैकेट फट गया था। इस का कारण था हवा का काम दबाव। हम जितनी अधिक उचाई पर होते हैं उतना ही वायु-मंडल में हवा का दबाव काम होता जाता है और साथ ही साथ ऑक्सीजन भी काम होती जाती है जिस से कारण सांस लेने भी दिक्कत होती है। थोड़ा आराम करने बैठ गया, चिप्स का पैकेट खुदरत ने खुद खोल दिया था अब मैं खाने को कैसे मन करता, बैठ गया खाने, तभी बारिश होने लगी। बुग्याल में ना तो कोई पेड़ होता है और ना ही कोई सर छिपाने की जगह। बुग्याल में कोई रास्ता ना भटक जाये इस के लिए कुछ कुछ दूरी पर छोटे छोटे सफ़ेद रंग के पत्थर रखे हैं जो दर्शाते हैं इधर से जाना है। 10 मिनट में ही काफी भीग गया। एक तो बारिश ऊपर से बदल ऐसे आ गए के कुछ भी दिखना बंद हो गया 1 मीटर का भी नहीं दिख रहा था तो पत्थर भी दिखना बंद हो गए। भीगता हुआ मैं खाई की तरफ जाने लगा फिर 1 मिनट को रुका, सोचा की भीगने दो पहले कुछ दिखेगा तभी आगे चलूँगा बदल हलके नहीं हुए कुछ भी नहीं दिख रहा था थोड़ा आगे चला तो 1 पत्थर मिला 4 से 5 फ़ीट ऊचा उस के निचे घुस गया, पत्थर थोड़ा टेड़ा था उस के निचे बारिश काम आ रही थी। ओले पड़ने लगे पुरे बुग्याल में मानो ओलो की चादर बिछ गई हो। करीब 40 मिनट तक सुकड़ा हुआ वही बैठा रहा असहनीय ठण्ड लगने लगी थी। जब बारिश रुकी तो 1.30 बज गया था। सोचा अब आगे जाऊ या वापसी। अभी मै 3625 मीटर की उचाई पर खलिया टॉप यहाँ से 125 मीटर उचाई पर रह गया था पर खलिया की तरफ काफी बदल थे तो वापसी चलने का फैसला लिया और चल दिया।
वापसी में कही नहीं रुका बस चलता गया। कभी भी पहाड़ से वापसी उतरते समय जल्दी जल्दी नहीं उतरना चाहिए, घुटनो में दर्द हो जाता है। इस बात का पता होते होए भी रस्ते में टांग की नस खिच गई। जैसे तैसे कर के बलाती बैंड तक आ गया सोच लिया था चाहे रत तक गाड़ी का इन्तिज़ार करना पड़े पैदल नहीं जाऊंगा अब तक लगभग 18 19 KM पैदल चल चुका था। बैठा रहा आधे घंटे बाद 1 वैगन आर आई हाथ दिया तो रोक गई अंदर पति पत्नी और उनकी बेटी थे आते ही कहा सर सिटी तक लिफ्ट चाहिए पैर में दर्द है। उन्होंने पूछा कहा से आ रहे हो मैंने बता दिया लिफ्ट मिल गई 9 KM के पूरे रस्ते दोनों पति पत्नी मुझ से बाते करते हुए आये, सवालो की बौछार कर दी अकेले क्यू गए थे और कहा कहा घूमे हो। परिवार का स्वभाव बहुत अच्छा था।
शहर आ कर सब से पहले चाय पीने गया, चाय पी ब्रीटान्नीअ का केक खाया। फिर कमरे में जा कर थोड़ी देर को सो गया। 8.30 बजे उठा खाना खाया फिर थोड़ी देर घूम फिर कर सो गया।
बलाती फार्म जाने का पैदल मार्ग
बलाती फार्म
बलाती फार्म में आलू की खेती
कल बनाये गए स्टैंड से लिया गया फोटो
बदल आ रहे हैं
पनोरमिओ मोड में 1 फोटो
यह पेड़ अधिक उचाई पर पाये जाते हैं पता नहीं बर्फ के वज़न से लेट गए या होते ही ऐसे हैं
पंचचूली की झलक
बदल आ गए
लो जी आ गए बदल
पत्थर के निचे बारिश से बचने के लिए
ओलो की चादर सी
कुमाऊ मंडल का टूरिस्ट रेस्ट हाउस
धन्यवाद