Post by ranvijaysingh on Sept 9, 2015 9:53:17 GMT 5.5
एक बार मैंने भयानक बेवकूफी की। बाइक से निकल लिया घूमने।
सुबह 7 बजे दिल्ली यूनिवर्सिटी से निकला था सोच कर की जहाँ थक जाऊँगा रुक जाऊँगा। सारे दिन अपनी बजाज एवेंजर पर चलता रहा, पानीपत और अम्बाला रुका चाय पानी और लस्सी के लिए।
शाम को 7:30 के करीब पठानकोट पहुँचा, सोचा यहीं कहीं कमरा लेकर रुक जाऊं। खैर खाना खाया फिर मन किया की आगे पहाड़ों की तरफ चलूँ।
2 अक्टूबर का दिन था और रामलीलाओं के दिन थे। पठान कोट से चल दिया। थोड़ी थोड़ी दूर पर गाँव क़स्बे मिलते तो वहाँ की रौनक रामलीलाओं की मन को मोहती और बचपन की यादें ताज़ा हो जाती।
खैर रात 12 के करीब Dalhaousie पहुँचा। 200 रूपए में कमरा लिया। और कम्बल तान सो गया।
अगले दिन 9 बजे जागा। फ्रेश होकर चाय पी और निकल पड़ा। Dalhaousie में कोई खास रूची न थी तो चम्बा और खजिहार के रास्ते हो लिया।
चलता गया चलता गया तकरीबन 30 या 40 kms चला तो रास्ते में भलेई माता, भद्रकाली के मंदिर के बारे में पता चला।
ऊंची पहाड़ी के शिखर पर भव्य मंदिर है। माता सोने के गहनों से ढकी हुई थीं। कोई खास सुरक्षा नहीं। कहते हैं एक बार पुराने समय में किसी ने चोरी की कोशिश की थी। चोर अंधे हो गए और पकड़े गए।
बहुत शान्ति मिली वहाँ बैठ कर। भंडारे का आयोजन था क्योंकि नवरात्रे थे। दबा कर कढ़ी चावल खाये।
वहीँ से वापस हो लिया Dalhaousie की तरफ। दोपहर 2 बजे वहाँ से निकला और नूरपुर के रास्ते रात 8 बजे पालमपुर पहुँचा। रास्ता पर्वतों का था तो मज़ेदार रहा।
पालमपुर में BSNL इंस्पेक्शन क्वार्टर बुक करवा रखा था 3 दिन की ख़ातिर। तो रात खाना खा कर पड़ गया।
नींद गजब की आई।
अगले दिन जागा 8 बजे। चाय नाश्ता करके पालमपुर से निकला मैक्लोडगंज के लिए। निकलते ही बारिश हो गई।
एक ढाबे पर रुक कर कढ़ी चावल लपेटे। फिर चल पड़ा। बारिश रुक चुकी थी।
पालमपुर से मैक्लोडगंज के रास्ते में चाय के बागान हैं। मन मोहते हैं। कई कई जगह ऐसी मस्त ढलान वाली सड़क है की मैंने बाइक का इंजन ऑफ़ कर दिया कई बार।
बिना इंजन के आवाज़ के पहाड़ों की सांय सांय वाली आवाज़ बहुत सुखद जान पड़ी।
मैक्लोडगंज पहुँचा दोपहर में। वहाँ घूमा फिर और शाम फिर लौट पड़ा पालमपुर BSNL क्वार्टर के लिए। रास्ते में बारिश हो गयी। भीग गया पर बीमार नहीं हुआ।
रात पहुँचा पालमपुर और खाना खाकर सो गया
अगले दिन सुबह 8 बजे पालमपुर से निकला दिल्ली के लिए
वापसी ऊना के रास्ते हुई। रात पानीपत के बाद एक ढाबे पर खाना खा कर चारपाई पर सो गया। प्यारे से छोटू को बोल का की भाई सुबह 4 बजे जगा दियो।
उसने वैसे 4 बजे जगा दिया। चाय पीकर निकल पड़ा।
7 बजे दिल्ली लग गया।
अब बात अपनी बेवकूफ़ी की। बाइक से सम्बंधित कोई सामान नहीं लेकर चला। जैसे wires extra tube हवा भरने का पंप वगेरह। न छाता न बरसाती की बारिश से बच सकूँ।
वो तो ईश्वर की कृपा रही जो यात्रा मंगलमय रही
सुबह 7 बजे दिल्ली यूनिवर्सिटी से निकला था सोच कर की जहाँ थक जाऊँगा रुक जाऊँगा। सारे दिन अपनी बजाज एवेंजर पर चलता रहा, पानीपत और अम्बाला रुका चाय पानी और लस्सी के लिए।
शाम को 7:30 के करीब पठानकोट पहुँचा, सोचा यहीं कहीं कमरा लेकर रुक जाऊं। खैर खाना खाया फिर मन किया की आगे पहाड़ों की तरफ चलूँ।
2 अक्टूबर का दिन था और रामलीलाओं के दिन थे। पठान कोट से चल दिया। थोड़ी थोड़ी दूर पर गाँव क़स्बे मिलते तो वहाँ की रौनक रामलीलाओं की मन को मोहती और बचपन की यादें ताज़ा हो जाती।
खैर रात 12 के करीब Dalhaousie पहुँचा। 200 रूपए में कमरा लिया। और कम्बल तान सो गया।
अगले दिन 9 बजे जागा। फ्रेश होकर चाय पी और निकल पड़ा। Dalhaousie में कोई खास रूची न थी तो चम्बा और खजिहार के रास्ते हो लिया।
चलता गया चलता गया तकरीबन 30 या 40 kms चला तो रास्ते में भलेई माता, भद्रकाली के मंदिर के बारे में पता चला।
ऊंची पहाड़ी के शिखर पर भव्य मंदिर है। माता सोने के गहनों से ढकी हुई थीं। कोई खास सुरक्षा नहीं। कहते हैं एक बार पुराने समय में किसी ने चोरी की कोशिश की थी। चोर अंधे हो गए और पकड़े गए।
बहुत शान्ति मिली वहाँ बैठ कर। भंडारे का आयोजन था क्योंकि नवरात्रे थे। दबा कर कढ़ी चावल खाये।
वहीँ से वापस हो लिया Dalhaousie की तरफ। दोपहर 2 बजे वहाँ से निकला और नूरपुर के रास्ते रात 8 बजे पालमपुर पहुँचा। रास्ता पर्वतों का था तो मज़ेदार रहा।
पालमपुर में BSNL इंस्पेक्शन क्वार्टर बुक करवा रखा था 3 दिन की ख़ातिर। तो रात खाना खा कर पड़ गया।
नींद गजब की आई।
अगले दिन जागा 8 बजे। चाय नाश्ता करके पालमपुर से निकला मैक्लोडगंज के लिए। निकलते ही बारिश हो गई।
एक ढाबे पर रुक कर कढ़ी चावल लपेटे। फिर चल पड़ा। बारिश रुक चुकी थी।
पालमपुर से मैक्लोडगंज के रास्ते में चाय के बागान हैं। मन मोहते हैं। कई कई जगह ऐसी मस्त ढलान वाली सड़क है की मैंने बाइक का इंजन ऑफ़ कर दिया कई बार।
बिना इंजन के आवाज़ के पहाड़ों की सांय सांय वाली आवाज़ बहुत सुखद जान पड़ी।
मैक्लोडगंज पहुँचा दोपहर में। वहाँ घूमा फिर और शाम फिर लौट पड़ा पालमपुर BSNL क्वार्टर के लिए। रास्ते में बारिश हो गयी। भीग गया पर बीमार नहीं हुआ।
रात पहुँचा पालमपुर और खाना खाकर सो गया
अगले दिन सुबह 8 बजे पालमपुर से निकला दिल्ली के लिए
वापसी ऊना के रास्ते हुई। रात पानीपत के बाद एक ढाबे पर खाना खा कर चारपाई पर सो गया। प्यारे से छोटू को बोल का की भाई सुबह 4 बजे जगा दियो।
उसने वैसे 4 बजे जगा दिया। चाय पीकर निकल पड़ा।
7 बजे दिल्ली लग गया।
अब बात अपनी बेवकूफ़ी की। बाइक से सम्बंधित कोई सामान नहीं लेकर चला। जैसे wires extra tube हवा भरने का पंप वगेरह। न छाता न बरसाती की बारिश से बच सकूँ।
वो तो ईश्वर की कृपा रही जो यात्रा मंगलमय रही